Saturday 16 December 2017

हमारे यहाँ...


जाड़े की ही रात थी जब उसने ख्वाब देखा था । खुली आँखों से । हाँ, ख्वाब ही था वो । कभी मुक्कमल न होने वाला ख्वाब । कि उसके हाथों में एक गोल्डन रिंग है और महफ़िल में सब उसके सुखी जीवन की कामना कर रहे हैं । कि उसके बगल में बैठा शख्स उसका अप्रतिम प्रेमी है जिसे वो वर्षों से चाहती आयी थी । कि उसके हाथों में मेहँदी रची है । चटक लाल । और उसके दोनों हाथों में उकेरे हुए हैं चित्र । दूल्हा और दुल्हन के । दाहिने हाथ में तो उसका खुद का ही नाम लिखा हुआ था । पर बाएँ हाथ में बड़ी ही चतुराई से लिखा हुआ था उसका नाम जिसे वो खुद ढूँढने की कोशिश कर रही थी । एक नाम तो था पर ये वो नाम नहीं था जो उसके मुताबिक होना चाहिए था ।

क्योंकि हमारे यहाँ रिश्ते दिल से कम और जन्मपत्री से ज्यादा बनते हैं ।

'वर और वधू अपने स्थान पर खड़े हो जाएँ ।' विवाह संस्कार संपन्न करवाने आये पंडित जी की आवाज़ से उसका स्वप्न छिन्न भिन्न हो गया । उसको साफ़ नज़र आ रहा था बाएँ हाथ पर लिखा वो नाम जो कुछ ही देर बाद उसका जीवनसाथी, उसका पति कहा जाएगा । और वो जिसकी अर्द्धांगिनी बन जायेगी ।

क्योंकि हमारे यहाँ सात फेरे ही सबकुछ हैं ।

सुबह-सुबह रस्मों के बीच दूल्हा बिना एक तोले की सोने की जंजीर के निवाला लेने से इंकार कर गया । मान मनौवल किया गया । आखिरकार एक तोले की सोने की जंजीर की जगह 25 हजार रुपए नगद दिए जाने पर दूल्हे ने एक कौर खिचड़ी खायी ।

क्योंकि रूठने का बहाना करके लड़की के बाप को लूटना भी हमारी परम्परा है ।

वो अपनी माँ और बहनों से, सखियों से लिपट कर रो रही थी । आज तक कभी भी वो अपने घर से बाहर अकेली नहीं गयी थी । न कोई तो उसके साथ उसके घर का सबसे छोटा सदस्य ही सही, पर हमेशा कोई न कोई साथ ही जाता और उसपर भी वो कभी किसी के यहाँ रूकती नहीं थी ।

क्योंकि हमारे यहाँ घर से बाहर निकलने को दामन में दाग का पर्याय माना जाता है ।

एक हफ्ते बाद जब वो वापस आयी तो उसकी आँखों में सूजन थी । माँ से लिपटकर वो जितना रो सकती थी रोयी । पति दुर्व्यसनी था । देर रात घर आता । वो सो रही होती तो दरवाजा खुलने में देरी के कारण उसको पीटता । उसने सारी व्यथा घर में कह सुनायी । माँ ने कहा सब ठीक हो जाएगा ।

क्योंकि अर्द्धांगिनी होना ग़ुलाम होने का पर्याय है हमारे समाज में ।

दूसरी विदायी के लिए न पति आया न कोई बुजुर्ग । सन्देश भेजा कि जंजीर अभी तक नहीं मिली और 25 हजार में एक तोला सोना तो गए ज़माने की बात हुई । सोने की जंजीर नहीं तो विदायी भी नहीं ।

क्योंकि हमारे यहाँ समधी तो कुलश्रेष्ठ ही होना माँगता, धन से भी और जन्म से भी ।

माँग पूरी की गयी । खेत गिरवी रख गया । अबकी लड़की ने जाने से इंकार कर दिया । कि जिसका नाम वो चाहती थी हथेली में लिखा होना वो आया था उसका हाथ माँगने । आखिरी साँस तक पीटा गया । तिसपर लड़की ने ज़हर निगल लिया ।

क्योंकि हमारे यहाँ रिश्ते दिल के अलावा तमाम गुण, अवगुण, लक्षण, नक्षत्र और कर्मकाण्ड से बनते हैं, दिल से नहीं ।



2 comments:

  1. Behatreen bhai. Ye shaandaar likh dala.

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  2. bahot khoob ek dum heart touching.... bahot stories padhi h but u r now one of my best writers..... ekdum natural n realistic..... normal incidence ko b khubsurti se sare emotions se ukera h.....u r a real artist/ writer.... u r going to be heart winning writer soon.... all d best dear......

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